भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने चेंबर से वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए सोमवार को नाबालिग रेप पीड़िता के माता-पिता और सायन अस्पताल के डॉक्टरों से लगभग 1.30 घंटे तक बातचीत की। अदालती आदेश में कहा गया कि गर्भावस्था की समाप्ति का निर्णय लेते समय अगर एक नाबालिग गर्भवती की राय अभिभावक से अलग होती है तो गर्भवती व्यक्ति के दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने बच्ची के माता-पिता से बातचीत के आधार पर गर्भपात का अपना फैसला वापस ले लिया था।

अदालत ने एक फुटनोट में कहा, "हम 'गर्भवती व्यक्ति' शब्द का प्रयोग करते हैं और मानते हैं कि सिसजेंडर महिलाओं के अतिरिक्त, कुछ गैर-बाइनरी लोग और ट्रांसजेंडर पुरुष भी अन्य लिंग पहचानों के बीच गर्भावस्था का अनुभव कर सकते हैं।"

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रजनन स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। इसलिए गर्भावस्था की समाप्ति का निर्णय लेते समय अगर एक नाबालिग गर्भवती व्यक्ति की राय अभिभावक से भिन्न होती है, तो गर्भवती व्यक्ति के दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हाल ही में मुंबई की एक 14 वर्षीय रेप पीड़िता के गर्भवती होने से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए, लगभग 30 सप्ताह के भ्रूण को गिराने के अपने 22 अप्रैल के आदेश को उसकी मां के दृष्टिकोण के बदलाव को देखते हुए पलट दिया था।

रविवार को जारी किए गए आदेश में कोर्ट ने कहा, "गर्भ समापन पर अपनी राय बनाते समय मेडिकल बोर्ड को मेडिकल गर्भपात अधिनियम की धारा 3(2-बी) के तहत खुद को मानदंडों तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि गर्भवती व्यक्ति की शारीरिक और भावनात्मक भलाई का भी मूल्यांकन करना चाहिए।

स्पष्टीकरण राय जारी करते समय मेडिकल बोर्ड को राय और परिस्थितियों में किसी भी बदलाव के लिए ठोस कारण बताने होंगे। प्रावधान धारा 3(2-बी) इस आधार पर संदेहास्पद है कि यह अनाचार या रेप जैसे उदाहरणों की तुलना में काफी हद तक असामान्य भ्रूण को वर्गीकृत करके किसी व्यक्ति की स्वायत्तता को अनुचित रूप से बदल देता है। इस मुद्दे की उचित कार्यवाही में परीक्षण किया जाना चाहिए, यह आवश्यक हो गया है।

पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में, गर्भावस्था को पूरा करने के लिए पीड़िता और उसके माता-पिता का दृष्टिकोण एक जैसा है। 

हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रजनन स्वायत्तता और गर्भावस्था की समाप्ति के निर्णयों में गर्भवती व्यक्ति की सहमति सर्वोपरि है। यदि गर्भवती व्यक्ति और उसके अभिभावक की राय में भिन्नता है, तो अदालत को उचित निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले नाबालिग या मानसिक रूप से बीमार गर्भवती व्यक्ति की राय को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि इस मामले में विस्तृत चर्चा के बाद नाबालिग के माता-पिता ने गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है। पीठ ने कहा कि हमारे विचार से इस फैसले को स्वीकार किया जाना चाहिए।

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